जानिए भारत में कैसे बस गया पाकिस्तानी जासूस

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जानिए भारत में कैसे बस गया पाकिस्तानी जासूस

Simran Singh 02-08-2023 12:36:43

सिमरन सिंह  
लोकल न्यूज़ ऑफ़ इंडिया, 
नई दिल्ली:  अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक़ इस जासूस ने किराये पर घर लिया, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया, राशन कार्ड और यहां तक की एक नए नाम के साथ भारत का पासपोर्ट भी ले लिया.यही नहीं इस जासूस ने अपने बेटे का दाख़िला एक प्रमुख स्कूल में करा लिया और बेटी के लिए जन्म प्रमाण पत्र भी बनवा लिया.

14 जून 1999 तक सैयद अहमद मोहम्मद देसाई की ज़िंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था. फिर किसी ने पुलिस को गुप्त सूचना दी कि ‘कोई संदिग्ध व्यक्ति पाकिस्तान को ख़ुफ़िया सूचनायें भेज रहा है.’

अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक़ पुणे सिटी पुलिस के इंस्पेक्टर सुरेंद्र बापू पाटिल को ये गुप्त सूचना मिली थी जिसके बाद देसाई को कटराज कोंधवा रोड स्थित कंचन प्लाज़ा से गिरफ़्तार कर लिया गया. तब देसाई की उम्र 38 साल थी.

पुलिस को पता चला था कि देसाई मूल रूप से कराची के रहने वाले हैं और वो पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के एजेंट के रूप में काम कर रहे थे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ पुलिस को देसाई के घर से ख़ुफ़िया दस्तावेज़ मिले थे जो भारतीय सेना के जवानों के प्रशिक्षण और हथियारों से जुड़े थे. शंकरनगर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफ़आईआर के बाद देसाई को जेल भेज दिया गया था. लेकिन ये कहानी यहीं ख़त्म नहीं हुई.

आठ साल जेल में रहने के बाद सैयद देसाई उस पुलिस थाने से भाग गए थे, जिसमें उन्हें निगरानी में रखा गया था. फ़रार होने के तीन सप्ताह बाद उन्हें कोलकाता से गिरफ़्तार किया गया और फिर वाघा बार्डर के रास्ते पाकिस्तान भेज दिया गया.

फ़रवरी 1960 में कराची में पैदा हुए देसाई ने 1984 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में बीबी ज़ोहरा से शादी की. रिकॉर्ड के मुताबिक़ ये दंपती अगस्त 1996 में 45 दिन के वीज़ा पर अटारी के रास्ते भारत आया.

पुलिस के मुताबिक़ देसाई कराची की एक कैंटीन में काम करते थे और उन्होंने वीज़ा लेकर कई बार भारत की यात्रा की थी. वो कपड़े और मेवे बेचने भारत आते-जाते रहे थे.

अक्तूबर 1996 में इस दंपती ने पुणे सिटी पुलिस की विदेश शाखा में अर्ज़ी दी और अस्थायी निवास परमिट हासिल कर लिया. ये परमिट 11 अक्तूबर 1996 तक वैध था. लेकिन सैयद देसाई पुणे में ठिकाने बदलते रहे और एक रिश्तेदार की मदद से घर किराये पर ले लिया.

इसके बाद फ़र्ज़ी
दस्तावेज़ों के आधार पर उन्होंने राशन कार्ड से लेकर पासपोर्ट तक बनवा लिया.

आगरा के एक स्कूल की फ़र्ज़ी टीसी के आधार पर सैयद देसाई ने अपने बेटे का दाख़िला शहर के एक प्रमुख स्कूल में करवा लिया.

देसाई ने एक फ़र्ज़ी नाम पर पासपोर्ट भी हासिल कर लिया था, जिसका इस्तेमाल उन्होंने दो बार पाकिस्तान जाने के लिए किया.

देसाई की गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने उनकी पत्नी को भी वीज़ा नियमों के उल्लंघन में गिरफ़्तार कर लिया था. घर की जांच के दौरान भारतीय सेना से जुड़े संवेदनशील दस्तावेज़ पुलिस को मिले थे.

ज़ोहरा को वापस पाकिस्तान भेज दिया गया था. पुलिस जांच में देसाई के आईएसआई का एजेंट होने की बात की पुष्टि हो गई थी.

जासूसी के इस मामले की जांच के दौरान पुलिस ने देसाई के कई संपर्कों को भी पकड़ा था. इस मामले में बाद में सीबीआई ने जांच की थी और कुल दस लोगों को अभियुक्त बनाया गया था. इनमें मुंबई में रहने वाले देसाई के कुछ संपर्क भी शामिल थे.

हालांकि बाद में अक्तूबर 2007 में देसाई ने अपना जुर्म क़बूल कर लिया था. अदालत ने उन्हें सात साल की सज़ा दी थी लेकिन वो तब तक आठ साल जेल में बिता चुके थे.

चार अभियुक्तों को सबूत पर्याप्त न होने की वजह से चार पर आरोप तय नहीं किये गए थे जबकि बाक़ी पांच को सात साल की सज़ा हुई थी. एक अभियुक्त को बरी कर दिया गया था.

जेल से रिहा होने के बाद देसाई पुलिस की निगरानी में थे. लेकिन जनवरी 2008 में वो फ़रार हो गए. बाद में उन्हें कोलकाता से हिरासत में लिया गया. जांच के दौरान पता चला कि वो सतारा में अपने साथ जेल में रहे एक पूर्व क़ैदी शैलेश जाधव के घर पर रहे, जो भारतीय सेना में क्लर्क थे और धांधली के आरोप में उनका कोर्ट मार्शल हो गया था.

देसाई और जाधव के ख़िलाफ़ एक नई एफ़आईआर दर्ज की गई थी. पुलिस ने दावा किया था कि जाधव के पास से सेना से संबंधित दस्तावेज़ बरामद हुए थे.

पुलिस के मुताबिक़ जाधव देसाई को दस्तावेज़ देना चाहते थे जो भारत से पश्चिम बंगाल के रास्ते बांग्लादेश जाना चाहते थे.

हालांकि पुणे की एक अदालत ने दोनों ही अभियुक्तों को इस मामले में पर्याप्त सबूत ना होने के कारण बरी कर दिया था. आख़िरकार अप्रैल 2011 में सैयद देसाई को पाकिस्तान भेज दिया गया.

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